मध्य प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में काम करने वाले जनभागीदारी कर्मचारियों के लिए राहत की खबर है। हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि किसी भी कर्मचारी की सैलरी मनमाने तरीके से कम नहीं की जा सकती। यह फैसला तब आया जब राजगढ़ जिले के शासकीय महाविद्यालय खिलचीपुर में एक कर्मचारी का वेतन बिना किसी कारण के घटा दिया गया था। लेकिन अब इस घटना क देखते हुए हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई और अपना फैसला सुनाया।
देखें क्या है पूरा मामला?
हितेश गुरगेला, जो पिछले 10 सालों से कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में काम कर रहे हैं, उनके वेतन में अचानक कटौती कर दी गई। पहले उन्हें 13,710 रुपये प्रति माह मिलते थे, लेकिन कॉलेज प्रबंधन ने इसे घटाकर 12,660 रुपये कर दिया। और इस बात से असंतुष्ट होकर हितेश गुरगेला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने तर्क दिया कि, वो कई सालों से लगातार काम कर रहे हैं। हाई कोर्ट पहले ही उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा देने को कह चुका है। लेकिन उनके केस पर फैसला आने से पहले ही वेतन काटना नियमों के खिलाफ है।
देखें हाई कोर्ट ने क्या कहा?
हाई कोर्ट ने इस मामले में कर्मचारी के पक्ष में फैसला दिया और मध्य प्रदेश सरकार, कलेक्टर राजगढ़ और कॉलेज प्रबंधन को आदेश दिया कि, कर्मचारी को पहले की तरह 13,710/- रुपये सैलरी दी जाए। बिना किसी वैध कारण के किसी कर्मचारी की सैलरी नहीं घटाई जा सकती।कॉलेज प्रशासन हाई कोर्ट के आदेश का पालन करे, नहीं तो आगे की कार्रवाई की जाएगी।
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जनभागीदारी कर्मचारियों के लिए क्या मायने रखता है यह फैसला?
इस फैसले से मध्यप्रदेश के हजारों जनभागीदारी कर्मचारियों को राहत मिली है।
अब कॉलेज प्रबंधन बिना किसी ठोस कारण के वेतन नहीं घटा सकता।
स्थायी कर्मचारी का दर्जा पाने की उम्मीदें और मजबूत हो गई हैं।
अगर किसी कर्मचारी के साथ ऐसा अन्याय होता है, तो वह हाई कोर्ट में अपनी लड़ाई लड़ सकता है।
क्या आगे भी होंगे ऐसे फैसले?
मध्य प्रदेश में जनभागीदारी कर्मचारियों की स्थिर नौकरी और वेतन को लेकर कई मामलों में सुनवाई चल रही है। अगर यह फैसला एक नजीर बनता है, तो हो सकता है कि राज्यभर के हजारों कर्मचारियों को बेहतर सुरक्षा और स्थायी नौकरी का लाभ मिले। अगर आप भी किसी सरकारी कॉलेज में जनभागीदारी कर्मचारी हैं और आपके वेतन में कटौती हुई है, तो हाई कोर्ट के इस फैसले का हवाला देकर आप भी अपना हक मांग सकते हैं।
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