CNG Plant In MP: नमस्कार दोस्तों इससे पहले हमने मध्यप्रदेश में रेल लाइन के बारे में बताया जहाँ पर 40 गांव के जमीन पर रेल ट्रैक बनाया जा रहा है जिसके बदले उन जमीन मालिकों को सरकारी नौकरी दी जा रही है। इसके साथ ही आज नयी खबर आई है। जिसमें मध्यप्रदेश में पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं।
जिसके तहत मध्यप्रदेश के पांच जिलों—ग्वालियर, भोपाल, इंदौर, जबलपुर और सागर में बायो सीएनजी प्लांट स्थापित किए जा रहे हैं, प्लांट के बनने से वहां के रहने वाले समुदायों को रोजगार के मिलने वाला है साथ ही सरकारी नौकरी के विकल्प भी खुलेंगे।
ग्वालियर में लाल टिपारा गौशाला का बायो सीएनजी प्लांट
मध्यप्रदेश के ग्वालियर में स्थित लाल टिपारा गौशाला में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की सामाजिक जिम्मेदारी निधि से 32 करोड़ रुपये की लागत से बायो-सीएनजी प्लांट स्थापित किया गया है। यह प्लांट प्रतिदिन 100 टन गोबर का उपयोग करके लगभग 2 टन बायो-सीएनजी और 20 टन जैविक खाद का उत्पादन करेगा इससे नगर निगम ग्वालियर को लगभग 7 करोड़ रुपये की आय होने की संभावना है।
भोपाल में स्थित 400 मीट्रिक टन क्षमता का बायो-सीएनजी प्लांट
भोपाल के आदमपुर छावनी क्षेत्र में 80 करोड़ रुपये की लागत से 10 एकड़ भूमि पर 400 मीट्रिक टन क्षमता वाला बायो-सीएनजी प्लांट स्थापित किया जा रहा है। यह प्लांट अगले वर्ष तक तैयार हो जाएगा और म्युनिसिपल वेस्ट से बायो-सीएनजी का उत्पादन करेगा, जिससे शहर की स्वच्छता और ऊर्जा आवश्यकताओं में सुधार होगा।
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इंदौर, जबलपुर और सागर में भी बायो-सीएनजी प्लांट स्थापित करने की तैयारी
ग्वालियर और भोपाल के बाद अब इंदौर, जबलपुर और सागर में भी बायो-सीएनजी प्लांट स्थापित करने की योजनाएं प्रगति पर हैं। इन प्लांट्स के माध्यम से कृषि अवशेषों, गोबर और अन्य जैविक कचरे से स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन किया जाएगा, जिससे पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
इन बायो-सीएनजी प्लांट्स की स्थापना से न केवल स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन होगा, बल्कि जैविक कचरे का सही प्रबंधन भी संभव होगा। इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी और किसानों को अतिरिक्त आय के स्रोत मिलेंगे। मध्यप्रदेश सरकार और विभिन्न निगमों की यह पहल राज्य को स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी, बल्कि स्थानीय समुदायों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा।
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